**** फैशन की मारी – "भारतीय नारी" ****
मित्रों...विवाह वाटिका के खुले मैदान की सर्द हवा में जहां पांच मिनट में ही पुरुषों के दांत कल्लू लोहार के चिमटे की भांति किटकिटाने की क्रांति करने लगते हैं, वहां ये वीर बालाएं डेढ़ सौ रुपये अतिरिक्त देकर बनवाए ब्लाउज के 'डीप यू कट' को दिखाने के लिए स्वेटर तक नहीं पहनतीं। स्वयं मेहनती होने के कारण जानती हैं कि 2 घंटे लगाकर मेहंदीवाले लड़के ने बांह पर जो 'बांका-टेढ़ा बूटा' बनाया है, 'सेल' में खरीदी ढाई सौ की शाल पहनकर मैं उसका बेड़ागर्क कैसे कर सकती हूं? फिर भले ही जगत बाऊजी आलोकनाथ वहां आकर उसके कंधे पर अपनी लोई क्यूं न डाल दें, ये रिक्शे में बिठाकर उन्हें भी वहां से बस स्टैंड के लिए प्रस्थान करा देंगी।
मित्रों...आज की इस भारतीय नारी को शीत लगने से एक सप्ताह तक रजाई के कवर से अपना नाक पौंछना स्वीकार है, किन्तु ये मम्मी का काला स्वेटर पहनकर उसके नीचे लहंगे की मैचिंग का बाजूबंद कैसे छिपा ले? कम समय में उस मासूम के सामने यूपीए सरकार से भी अधिक चुनौतियां रहती हैं। क्योंकि चार घंटे के उस उत्सव में उसे अपने तीनों परिधान पहनने होते हैं। हर नए परिधान पहनने से पहले ये पुष्टि भी करनी होती है, कि पुरानी वाला सभी ने देखा या नहीं। फिर बदलने के बाद यहां-वहां मोरनी बन घूमते ये गणना भी करनी पड़ती है कि मेरी अदाओं से घायल लोगों का आंकड़ा अन्तत: कहां तक पहुंचा? चूंकि सजना-संवरना दूसरों के लिए होता है और स्वेटर न पहनना शौर्य का काम है इसलिए मेरी प्रार्थना है कि अन्य शूरवीरों के साथ-साथ अगली 26 जनवरी से हर वर्ष ऐसी वीरांगनाओं का भी सम्मान होना चाहिए।मित्रों...जरा कल्पना करें, कि कैसा लगेगा! जब घोषणा होगी-पिंकी कुमारी, जिन्होंने अदम्य साहस, अटूट इच्छाशक्ति और अद्भुत पराक्रम का परिचय देते हुए भीषण शीतलहर के बीच इस ऋतु की सात शादियां बिना स्वेटर और शॉल के रहीं, ये सम्मान लेने के लिए हम मंच पर उनके पति को बुलाना चाहेंगे, क्योंकि वो स्वयं निमोनिया की शिकार होने के चलते अस्पताल में भर्ती हैं।
घर 4 दीवारी से नहीं 4 जनों से बनता है, परिवार उनके प्रेम
और तालमेल से बनता है | आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक
http://jeevanshailydarpan.blogspot.in/2014/02/blog-post_24.html