घर 4 दीवारी से नहीं 4 जनों से बनता हैपरिवार उनके प्रेम और तालमेल से बनता है सभी कार्यों को जोड़ कर साधना, सफल गृहणी का काम है नौकरीवाली से पैसा बनेगा/घर नहीं प्रभाव और दुर्भाव में, आधुनिक/पारिवारिक तालमेल से उत्तम घर परिवार से देश आगे बड़े रसोई, बच्चों-परिवार की देख भाल, गृह सज्जा के बीच अपने लिए भी ध्यान देती शिक्षित नारी-(निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/अनुसरण/ निशुल्क सदस्यता व yugdarpan पर इमेल/चैटकरें, संपर्कसूत्र- तिलक संपादक युगदर्पण 09911111611, 9999777358.

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Saturday, February 14, 2015

"वेलेन्टाइन डे"

"वेलेन्टाइन डे
"Live in Relationship"
ये शब्द आज कल हमारे देश में भी नव-अभिजात्य वर्ग में चल रहा है, इसका अर्थ होता है कि "बिना विवाह के पती-पत्नी की तरह से रहना" 
प्लेटो (एक यूरोपीय दार्शनिक) देकातेर्, और रूसो इन सभी महान(!) दार्शनिकों का तो कहना है कि "स्त्री में तो आत्मा ही नहीं होती", "स्त्री तो मेज और कुर्सी के समान हैं, जब पुराने से मन भर गया तो पुराना हटा के नया ले आये" 
वैलेंटाइन 1500 वर्ष जन्मे, वे -कहते थे, जानवरों की भांति, ये अच्छा नहीं है, इससे सेक्स-जनित रोग (veneral disease) होते हैं, उनके विवाह वो चर्च में कराते थे उस समय रोम का राजा था, क्लौड़ीयस, उसने वैलेंटाइन को फाँसी की सजा दे दी, आरोप क्या था, कि वो बच्चों की शादियाँ कराते थे, अर्थात विवाह करना अपराध था 

जिनका विवाह वैलेंटाइन ने करवाया था, उन सभी के सामने वैलेंटाइन को 14 फ़रवरी 498 ईःवी को फाँसी दे दी गई वे सब उस वैलेंटाइन की दुखद स्मृति में 14 फ़रवरी को वैलेंटाइन डे मनाने लगे, तो उस दिन से यूरोप में वैलेंटाइन डे मनाया जाता है हमारे यहाँ के लड़के-लड़िकयां बिना सोचे-समझे, एक दुसरे को वैलेंटाइन डे का कार्ड दे रहे हैं वो इसी कार्ड को अपने मम्मी-पापा को भी दे देते हैं, दादा-दादी को भी दे देते हैं और एक दो नहीं दस-बीस लोगों को ये ही कार्ड वो दे देते हैं इस धंधे में बड़ी-बड़ी कंपिनयाँ लग गयी हैं, जिनको कार्ड बेचना है, जिनको उपहार बेचना है, जिनको *चाकलेट बेचनी हैं और विज्ञापन हेतु टेलीविजन चैनल वालों ने इसका धुआधार प्रचार कर दिया 
पाश्चात्य अंधानुकरण में वैलेंटाइन डे के नाम से वही सब करने लगे, जिसका उसने विरोध किया और फांसी का दंड झेलना पड़ा। वाह रे! वैलेंटाइन के अंध भक्तो, पढ़े लिखे कहाते हो, और चौपाये (पशु) बन जाते हो ! भारतीयता का उपहास उड़ाते, हमें अपने पूर्वजों को दकियानूसी बताते हो? जिसे मना रहे हो, उसका इतिहास, कारण तथा परिणाम तो जान लो। 
घर 4 दीवारी से नहीं 4 जनों से बनता है,
परिवार उनके प्रेम और तालमेल से बनता है |
आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक