महिला ने कहा – “कृपया भीतर आइये और भोजन करिए।”
संत बोले – “क्या तुम्हारे पति घर पर हैं?”
महिला ने कहा – “नहीं, वे अभी बाहर गए हैं।”
संत बोले – “हम तभी भीतर आयेंगे, जब वह घर पर हों।”
शाम को उस महिला का पति घर आया
उस के पति ने कहा – “जाओ और उनसे कहो कि मैं घर
आ गया हूँ और उनको आदर सहित बुलाओ।”
महिला बाहर गई और एक से कहा
वे पुन: बोले – “मेरा नाम धन है” – फ़िर
दूसरे संतों की ओर संकेत कर के कहा – “इन
दोनों के नाम सफलता और प्रेम हैं। हममें से कोई एक
ही भीतर आ सकता है। आप घर के अन्य सदस्यों से
मिलकर तय कर लें कि भीतर किसे निमंत्रित करना है।”
महिला ने भीतर जाकर अपने पति को यह सब बताया।
उसका पति बहुत प्रसन्न हो कर बोला –
“यदि ऐसा है तो हमें धन को आमंत्रित करना चाहिए।
किन्तु उसकी पत्नी ने कहा – “मुझे लगता है कि हमें
सफलता को आमंत्रित करना चाहिए।”
उनकी बेटी दूसरे कमरे से यह सब सुन रही थी।
“तुम ठीक कहती हो, हमें प्रेम को ही बुलाना चाहिए”
महिला घर के बाहर गई और उसने संतों से कहा –
प्रेम घर की ओर बढ़ चले।
महिला ने आश्चर्य से उन दोनों से पूछा – “मैंने
तो मात्र प्रेम को आमंत्रित किया ही था।”
इस कहानी को एक बार, 2 बार, 3 बार
पढ़ें ........अच्छा लगे तो प्रेम के साथ रहें, प्रेम बाटें,
प्रेम दें और प्रेम लें क्योंकि प्रेम ही सफल जीवन
का रहस्य है।
निम्न चीजो का साथ छोड दें जीवन स्वत: सफल,
सुखद, सरल, सुगम, संयम, स्वस्थ, एवम मार्यादित
बना रहेगा -
छोड दें - दूसरों को नीचा दिखाना।
छोड दें - दूसरों के धन से जलना।
छोड दें - दूसरों की चुगली करना।छोड दें - दूसरों की सफलता पर इर्ष्या करना।
घर 4 दीवारी से नहीं 4 जनों से बनता है, परिवार उनके प्रेम
और तालमेल से बनता है | आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक