घर 4 दीवारी से नहीं 4 जनों से बनता हैपरिवार उनके प्रेम और तालमेल से बनता है सभी कार्यों को जोड़ कर साधना, सफल गृहणी का काम है नौकरीवाली से पैसा बनेगा/घर नहीं प्रभाव और दुर्भाव में, आधुनिक/पारिवारिक तालमेल से उत्तम घर परिवार से देश आगे बड़े रसोई, बच्चों-परिवार की देख भाल, गृह सज्जा के बीच अपने लिए भी ध्यान देती शिक्षित नारी-(निस्संकोच ब्लॉग पर टिप्पणी/अनुसरण/ निशुल्क सदस्यता व yugdarpan पर इमेल/चैटकरें, संपर्कसूत्र- तिलक संपादक युगदर्पण 09911111611, 9999777358.

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बिकाऊ मीडिया -व हमारा भविष्य

: : : क्या आप मानते हैं कि अपराध का महिमामंडन करते अश्लील, नकारात्मक 40 पृष्ठ के रद्दी समाचार; जिन्हे शीर्षक देख रद्दी में डाला जाता है। हमारी सोच, पठनीयता, चरित्र, चिंतन सहित भविष्य को नकारात्मकता देते हैं। फिर उसे केवल इसलिए लिया जाये, कि 40 पृष्ठ की रद्दी से क्रय मूल्य निकल आयेगा ? कभी इसका विचार किया है कि यह सब इस देश या हमारा अपना भविष्य रद्दी करता है? इसका एक ही विकल्प -सार्थक, सटीक, सुघड़, सुस्पष्ट व सकारात्मक राष्ट्रवादी मीडिया, YDMS, आइयें, इस के लिये संकल्प लें: शर्मनिरपेक्ष मैकालेवादी बिकाऊ मीडिया द्वारा समाज को भटकने से रोकें; जागते रहो, जगाते रहो।।: : नकारात्मक मीडिया के सकारात्मक विकल्प का सार्थक संकल्प - (विविध विषयों के 28 ब्लाग, 5 चेनल व अन्य सूत्र) की एक वैश्विक पहचान है। आप चाहें तो आप भी बन सकते हैं, इसके समर्थक, योगदानकर्ता, प्रचारक,Be a member -Supporter, contributor, promotional Team, युगदर्पण मीडिया समूह संपादक - तिलक.धन्यवाद YDMS. 9911111611: :

Saturday, November 22, 2014

वर्षगांठ पर शुभकामनायें एवं शुभाशीष

पवित्र बंधन की पावन वर्षगांठ पर Smrity Relan Sudan एवं Siddharth Sudan. को सपरिवार हार्दिक शुभकामनायें एवं शुभाशीष। असीम सुख शांति का वास, स्वस्थ तथा मधुर प्रेम का निर्बाध प्रवाह आपके जीवन में सदा बना रहे। परम पिता की अनन्त कृपा के प्रसाद से आपकी झोली भरी रहे। 
घर 4 दीवारी से नहीं 4 जनों से बनता है, परिवार उनके प्रेम और तालमेल से बनता है | आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक

Saturday, November 8, 2014

स्वतंत्रता उद्घोष -विकृत परिभाषा

स्वतंत्रता उद्घोष -विकृत परिभाषा 
Photo: मैं आजादी चाहती हूं कि किसे और कहां पर चूम लूं। इससे किसी को मतलब नहीं होना चाहिए । चुंबन विरोध का सबसे अच्छा तरीका है, इसलिए हम नैतिकता का पाठ पढ़ाने वालों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं । हम उनके साथ कोई टकराव नहीं चाहते इसलिए हम प्यार का संदेश फैलाने की कोशिश कर रहे हैं---:: सायंतनी (पीएचडी की छात्रा)
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मित्रो सुरुआत कुछ कटु सब्दो के साथ करता हु ''सायंतनी जैसे यदि रेप की शिकायत करे तो भी क्या करना है, आखिर शरीर भी तो ''किस'' लिये बनाया गया है, जो मर्जी है वह सबको करने दो । माता पिता कें सामने खुले आम सडको मे भी जैसे कुत्ते करते है क्योकि ''संघ'' का विरोध जो करना है"
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मित्रो किसी हिन्दी फिल्म का यह गाना "किस किस को दूं" पहले तो समझ ही नहीं आया कि गीतकार कहना क्या चाहता है । फिर एक दिन अचानक पुराना दोहा पढ़ा- "कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय" पढ़ा तो बात कुछ समझ में आई जैसे यहां एक "कनक" का अर्थ सोना और दूसरे का मतलब धतूरा है वैसे ही इस गाने में पहले "किस" का अर्थ चुम्बन और दूसरे का मतलब अजनबी है ।

अब आप कहेंगे कि ''क्या बाघेल साहब आप सठिया गए हैं जो बुढ़ापे में प्रवेश करते ही ऎसी-वैसी बातें कर रहे हैं'' दरअसल मुद्दा कुछ नौजवानों और नौजवानियों ने उठाया है । एक शहर में "मॉरल पुलिसिंग" के जवाब में इन लोगों ने "किस फेस्टिवल" मनाने का निर्णय किया । 

अरे होनहारो स्त्री-पुरूष् को भगवान ने बनाया है और दोनों ने मिलकर संसार रचा है पर यह सर्जन खुले में करने की क्या जरूरत है ? अगर बेशर्मी का मतलब ही आजादी है तो काहे को वस्त्र धारण कर घूमते हो । मवेशियों की तरह प्राकृतिक रूप में रहो । खूब "किस" करो और किस किस के साथ करना है इसका हिसाब भी रखो लेकिन पेड़ की टुगली पर बैठ कर ओछी हरकतें करोगे तो मेरे जैसा कोई न कोई तो टोकेगा ही ।

अल्प वस्त्रों में विचरण करने वाली स्मार्ट पीढ़ी खुद का नहीं तो अपने जन्मदाताओं की इज्जत का तो कुछ ख्याल रखे । हो सकता है हमारी बातें उनको नागवार गुजरें। गुजरें अपनी बला से। अब ये न कहना कि हम बच्चे से सीधे बूढ़े हो गए। जवानी हम पर भी चढ़ी थी लेकिन जवानी का ढोल कभी नहीं कूटा । 

अब साहब हम कोई नामी राजनीतिज्ञ तो हैं नहीं जो ऎसी दिलचस्प खबरों को नजरअंदाज करें । हम तो लोकतंत्र/ समाजतन्त्र के साधारण प्रहरी हैं । फोकटी चंद है ,फुरसतीलाल है, हम तो अपना समय पास करेंगे साथ ही आपको भी लगाकर रखेंगे । तो हमारे बच्चो जितना मर्ज़ी आये उतना किस करो लेकिन इतना जरूर चाहते हैं समाज में कुछ तो पर्दादारी बानी रहे रहे । नहीं तो हम ठहरे संघी हमारी लठ्ठ तो तैयार ही रहती है, हमारे संस्कृत पर हमला करने वालो पर ॥  1)यदि पूजा पाठ व्यक्तिगत मामला है, घर पर करें और चौराहे बीच पशुवत प्रेम प्रदर्शन की स्वतंत्रता नैतिकता का पाठ पढ़ाने वालों के विरुद्ध प्रदर्शन करना है। तब ऐसी अविवेकी सोच के व्यक्ति /व्यक्तियों का तो मस्तिष्क परिक्षण आवश्यक हो जाता है। धर्म /समाज का मामला सामूहिक क्रिया हो सकता है, किन्तु इन लफंगों का यह कृत्य सामूहिक अर्थात कोई पशुओं की भांति कभी, कहीं, किसी के साथ, कुछ भी करे, असामाजिक ही कहा जायेगा। 
  2)यदि इन लफंगों के कुतर्क को माना जाये कि मनमानी की स्वतंत्रता में बढ़ा नैतिकता का पाठ पढ़ाने वालों के विरुद्ध ये हठधर्मी प्रदर्शन उचित है, तब इसी तर्क से ये भी कहा जा सकता है कि धर्मनिरपेक्षता का पाठ पढ़ाने वालों के विरुद्ध भी मैं आजादी चाहता हूं।  तब धर्मनिरपेक्षता के आधुनिक शर्मनिरपेक्ष ठेकेदार उसे सांप्रदायिक बतलाते हैं ? 
  3)सायंतनी (छात्रा की शोध) अविवेक पूर्ण बात कर रही है कि किसे और कहां पर चूम लूं। इससे किसी को मतलब नहीं होना चाहिए। यहाँ व्यक्तिगत होने को बाध्य करती है कि इसकी शोध का स्तर क्या रहेगा ? मैं हत्या करूँ या आत्महत्या  इससे किसी को मतलब नहीं होना चाहिए। पुलिस बंदी बनाये, तो गुंडा पुलिस कहलाये, और हम स्वतंत्रता के रक्षक बन नियम तोड़ने आये है। 
   4)प्रदर्शनी बिकाऊ माल की, सजा चमका कर, प्रस्तुति के लिए होती है। फूहड़ प्रदर्शन स्वतंत्रता का नहीं छिछोरेपन का प्रतीक है। अत्यधिक उत्तेजक प्रदर्शन करके हम तो चले गए, किन्तु उत्तेजक का शिकार कोई अन्य बन गया। तब समाज को मोमबत्ती दिखाने वाले, स्वयं अंधकार से बाहर आना नहीं चाहते। कुतर्क- 'जिनके साथ ऐसा हुआ, वे अंग प्रदर्शन नहीं 
कर रही थी।  आरोप- पुरुषों की मानसिकता ही खराब है। 
   युवा मित्रो, सात्विक जीवन में मेरे शरीर का नाप, भार तथा चाल तो 16 से 60 की आयु में बदले नहीं, किन्तु इतना ही नहीं है, जीवन में आज तक किसी से भय न खाया है, न किसी सच्चे को अनावश्यक धमकाया है। अधिक कहना आत्म स्तुति हो जायेगा। एक शेर जो मैंने 40 -42 वर्ष पूर्व लिखा तथा वीर अर्जुन में प्रकशित हुआ था - 
सत्य की राह में जॉ चल नहीं पाये, जो भय खाए व रुक जाये, 
जिसमे रवानी न हो, वो जवानी भी क्या खाक जवानी होगी। 
जिन्हे जवानी की प्रदर्शनी में रूचि है, वो अंग प्रदर्शन से नहीं, इसके 'निडर प्रवाह' से प्रमाणित करते हैं।
जहाँ संस्कार का संचार ही प्रवाहित न हो, वे अंग प्रदर्शन से अपने जिवंत होने का छद्म प्रमाण देते हैं। 
   मित्रो, हम तो लोकतंत्र/ समाजतन्त्र के साधारण प्रहरी हैं। बाघेल जी के शब्दों में फोकटी चंद है, फुरसतीलाल है, किन्तु समय का सदुपयोग हम अपना तो करेंगे, साथ ही आपको भी इसमें लगाकर रखेंगे। तो हमारे बच्चो, जितना आपका मन चाहे, उतना प्रेम करो किन्तु इतना अवश्य चाहते हैं कि मानव सामाजिक जीव है, पशु नहीं। पशुवत आचरण न करें। पशु या मानव समाज में कुछ अंतर है, तो पर्दादारी बनी रहे। नहीं तो हम ठहरे संघी, हमारी लठ्ठ तो तैयार ही रहती है, हमारे संस्कृति पर प्रहार करने वालो पर॥
"अंधेरों के जंगल में, दिया मैंने जलाया है |
इक दिया, तुम भी जलादो; अँधेरे मिट ही जायेंगे ||"- तिलक
घर 4 दीवारी से नहीं 4 जनों से बनता है, परिवार उनके प्रेम
और तालमेल से बनता है | आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक

Wednesday, November 5, 2014

प्रकाशपर्व की बधाइयाँ

प्रकाशपर्व की बधाइयाँ

गुरुनानक जयंती पर विशेष 
जो बोले सो निहाल सतश्री अकाल 
132235549अखिल विश्व में बसे गुरुसिख, उनके दिल बसे नानक देव। सभी को प्रकाशपर्व की कोटि कोटि बधाइयाँ, शुभकामनाये, -तिलक समस्त युगदर्पण मीडिया परिवार YDMS
गुरपूरब के पवित्र दिन का महत्व - इसे प्रकाश उत्सव के नाम से भी जाना जाता है। इस पवित्र दिन केशधारी व सेहजधारी गुरु ग्रन्थ साहब की वाणी का अमृत, तथा कीर्तन अरदास करते हैं। इसके पूर्व प्रभात फेरियाँ निकली जाती हैं। गुरुद्वारों में अखंड लंगर तो 
कृ इस लिंक पर बटन दबाएं http://dharmsanskrutidarpan.blogspot.in/2014/11/blog-post.html
यह राष्ट्र जो कभी विश्वगुरु था, आज भी इसमें वह गुण,
योग्यता व क्षमता विद्यमान है | आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक
घर 4 दीवारी से नहीं 4 जनों से बनता है,
परिवार उनके प्रेम और तालमेल से बनता है |
आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक

Monday, October 20, 2014

प्रीतम मुंडे सर्वाधिक लोकप्रिय सांसद

प्रीतम मुंडे बनी सर्वाधिक लोकप्रिय सांसद


प्रीतम मुंडेबीड युदस: स्व. गोपीनाथ मुंडे की बेटी प्रीतम मुंडे देश की सर्वाधिक लोकप्रिय सांसद बन गई हैं। कारण चाहे कुछ भी रहा हो, आकड़े कहते हैं कि उन्होंने महाराष्ट्र के बीड लोकसभा उप चुनाव में 6.96 लाख मतो के अंतर से विजय अर्जित की है। इस प्रकार प्रीतम मुंडे ने इस लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा बनाये गये कीर्तिमान तथा उससे पूर्व पश्चिम बंगाल में माकपा के अनिल बसु के कीर्तिमान को तोड़ दिया है।
प्रधानमंत्री मोदी मुख्य चुनाव में गुजरात के बड़ोदरा सीट से 5.70 लाख मतो के अंतर से जीते थे।वर्तमान लोस चुनाव में नरेन्द्र मोदी ने सबसे अधिक मतों के अंतर से विजय अर्जित की थी। अब प्रीतम मुंडे वर्तमान सहित, लोकसभा में सर्वाधिक मतों के अंतर से जीतने वाली सांसद बन गई हैं। 
2004 के लोकसभा चुनाव में माकपा के अनिल बसु ने आरामबाग लोकसभा सीट से 5.92 लाख मतों के अंतर से विजय अर्जित की थी, जो देश का अब तक का सबसे अधिक मतों के अंतर से जीतने का कीर्तिमान रहा है। भाजपा के दिवंगत मंत्री स्व. गोपीनाथ मुंडे की बेटी ने, अब तक के सभी कीर्तिमान  ध्वस्त कर दिये हैं। उल्लेखनीय है कि बीड लोकसभा सीट गोपीनाथ मुंडे के निधन के कारण खाली हुई थी। 
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Friday, October 10, 2014

करवा चौथ व्रत विधि व कथा

करवा चौथ व्रत विधि व कथा

Karva Chauth Vrat Pooja Vidhi + Katha in Hindi 
श्री गणेशाय नम: 
Karwa Chauth Pooja Vidhi in Hindiकार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत किया जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। इस वर्ष करवा चौथ का व्रत 11 अक्टूबर को रखा जाएगा। 
विधि: मान्यता है कि इस दिन विवाहित महिलाओं को निर्जला व्रत का पालन करना चाहिए। पूरे दिन व्रत रखने के बाद शाम के समय पूर्ण श्रृंगार कर करवा चौथ व्रत की कथा (Karva Chauth Ki Kahani) सुननी चाहिए। कथा के बाद किसी वृद्ध महिला को "करवा (छोटे घड़े जैसा पात्र)" देकर उनका आशीर्वाद लेना चाहिए। रात्रि के समय चन्द्रमा निकलने पर छलनी की ओट से उसे अर्घ्य देने के पश्चात् ही व्रत का पारण करना चाहिए। 
चन्द्रोदय समय (Moon Rise Time on Karva Chauth): इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त सायं 05 बजकर 52 मिनट से लेकर 07 बजकर 07 मिनट तक का है। इस वर्ष करवा चौथ के दिन चंद्रोदय रात 8.19 बजे होगा। 

करवा चौथ व्रत कथा (Karva Chauth Vrat Katha) 

Karva Chauth Vrat Kathaमहिलाओं के अखंड सौभाग्य का प्रतीक, करवा चौथ के दिन व्रत कथा पढ़ना, अनिवार्य माना गया है। करवा चौथकी कथाएं तो कई है, किन्तु सबका मूल एक ही है। करवा चौथ की एक प्रचलित कथा निम्न है:
करवा चौथ व्रत कथा (Karva Chauth Vrat Katha in Hindi) : महिलाओं के अखंड सौभाग्य का प्रतीक करवा चौथ व्रत की कथा कुछ इस प्रकार है- एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी। एक बार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को, सेठानी सहित उसकी सातों बहुएं और उसकी बेटी ने भी करवा चौथ का व्रत रखा। रात्रि के समय जब साहूकार के सभी लड़के भोजन करने बैठे, तो उन्होंने अपनी बहन से भी भोजन कर लेने को कहा। इस पर बहन ने कहा- भाई, अभी चांद नहीं निकला है। चांद के निकलने पर उसे अर्घ्य देकर ही, मैं आज भोजन करूंगी। 
साहूकार के बेटे अपनी बहन से बहुत प्रेम करते थे, उन्हें अपनी बहन का भूख से व्याकुल चेहरा देख अत्यधिक दुख हुआ। साहूकार के बेटे नगर के बाहर चले गए और वहां एक पेड़ पर चढ़ कर अग्नि जला दी। घर वापस आकर, उन्होंने अपनी बहन से कहा- देखो बहन, चांद निकल आया है। अब तुम उन्हें अर्घ्य देकर भोजन ग्रहण करो। साहूकार की बेटी ने अपनी भाभियों से कहा- देखो, चांद निकल आया है, तुम लोग भी अर्घ्य देकर भोजन कर लो। ननद की बात सुनकर भाभियों ने कहा- बहन अभी चांद नहीं निकला है, तुम्हारे भाई, धोखे से अग्नि जलाकर, उसके प्रकाश को चांद के रूप में तुम्हें दिखा रहे हैं।
साहूकार की बेटी, अपनी भाभियों की बात को अनसुनी करते हुए, भाइयों द्वारा दिखाए गए चांद को अर्घ्य देकर भोजन कर लिया। इस प्रकार करवा चौथ का व्रत भंग करने के कारण विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश साहूकार की लड़की पर अप्रसन्न हो गए। गणेश जी की अप्रसन्नता के कारण उस लड़की का पति रुग्ण पड़ गया और घर में बचा हुआ सारा धन उसकी चिकित्सा में लग गया। 
साहूकार की बेटी को जब अपने किए हुए दोषों का पता लगा, तो उसे बहुत पश्चाताप हुआ। उसने गणेश जी से क्षमा प्रार्थना की और फिर से विधि-विधान पूर्वक चतुर्थी का व्रत शुरू कर दिया। उसने उपस्थित सभी लोगों का श्रद्धानुसार आदर किया और तदुपरांत उनसे आशीर्वाद ग्रहण किया।
इस प्रकार उस लड़की के श्रद्धा-भक्ति को देखकर एकदंत भगवान गणेश जी, उसपर प्रसन्न हो गए और उसके पति को जीवनदान प्रदान किया। उसे सभी प्रकार के रोगों से मुक्त करके धन, संपत्ति और वैभव से युक्त कर दिया।
कहते हैं इस प्रकार यदि कोई मनुष्य छल-कपट, अहंकार, लोभ, लालच को त्याग कर श्रद्धा और भक्तिभाव पूर्वक, चतुर्थी के व्रत को पूर्ण करता है, तो वह जीवन में सभी प्रकार के दुखों और क्लेशों से मुक्त होता है और सुखमय जीवन व्यतीत करता है। 
जानिए! कैसे करें, करवा चौथ का व्रत: Karwa Chauth Vrat Vidhi in Hindi
http://dharmsanskrutidarpan.blogspot.in/2014/10/blog-post.html
कभी विश्व गुरु रहे भारत की, धर्म संस्कृति की पताका;
 विश्व के कल्याण हेतू पुनः नभ में फहराये | - तिलक
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Saturday, August 30, 2014

प्रेम ही सफल जीवन का रहस्य

प्रेम ही सफल जीवन का रहस्य
एक दिन एक महिला अपने घर के बाहर आई और उसने तीन 
संतों को अपने घर के सामने देखा। वे उसके परिचित नहीं थे।

महिला ने कहा – “कृपया भीतर आइये और भोजन करिए।”
संत बोले – “क्या तुम्हारे पति घर पर हैं?”
महिला ने कहा – “नहीं, वे अभी बाहर गए हैं।”
संत बोले – “हम तभी भीतर आयेंगे, जब वह घर पर हों।”
शाम को उस महिला का पति घर आया 
और महिला ने उसे यह सब बताया।
उस के पति ने कहा – “जाओ और उनसे कहो कि मैं घर
आ गया हूँ और उनको आदर सहित बुलाओ।”
महिला बाहर गई और एक से
 कहा 
आप उनको लेकर भीतर आयें। युवा संत बोले – 
“मैं किसी भी घर में, इन्हे साथ प्रवेश नहीं करा सकता।”
“पर क्यों?” – उस ने पूछा।
वे पुन: बोले – “मेरा नाम धन है” – फ़िर
दूसरे संतों की ओर संकेत कर के कहा – “इन
दोनों के नाम सफलता और प्रेम हैं। हममें से कोई एक
ही भीतर आ सकता है। आप घर के अन्य सदस्यों से
मिलकर तय कर लें कि भीतर किसे निमंत्रित करना है।”
महिला ने भीतर जाकर अपने पति को यह सब बताया।
उसका पति बहुत प्रसन्न हो कर बोला –
“यदि ऐसा है तो हमें धन को आमंत्रित करना चाहिए। 

हमारा घर आनंद से भर जाएगा।”
किन्तु उसकी पत्नी ने कहा – “मुझे लगता है कि हमें
सफलता को आमंत्रित करना चाहिए।”
उनकी बेटी दूसरे कमरे से यह सब सुन रही थी। 
वह उनके पास आई और बोली – “मुझे लगता है कि 
हमें प्रेम को आमंत्रित करना चाहिए। 
प्रेम से बढ़कर कुछ भी नहीं हैं।”
“तुम ठीक कहती हो, हमें प्रेम को ही बुलाना चाहिए” 
– उसके माता-पिता ने कहा।
महिला घर के बाहर गई और उसने संतों से कहा – 
“आप में से जिनका नाम प्रेम है, 
वे कृपया घर में प्रवेश कर भोजन गृहण करें।”
प्रेम घर की ओर बढ़ चले। 
अन्य दो संत भी उनके पीछे चलने लगे।
महिला ने आश्चर्य से उन दोनों से पूछा – “मैंने
तो मात्र प्रेम को आमंत्रित किया ही था।
उनमें से एक ने कहा – “यदि आपने धन और 
सफलता में से किसी एक को 
आमंत्रित किया होता तो केवल वही भीतर जाता। 
आपने प्रेम को आमंत्रित किया है। 
प्रेम कभी अकेला नहीं जाता। 
प्रेम जहाँ- जहाँ जाता है, 
धन और सफलता उसके पीछे जाते हैं।
इस कहानी को एक बार, 2 बार, 3 बार
पढ़ें ........अच्छा लगे तो प्रेम के साथ रहें, प्रेम बाटें,
प्रेम दें और प्रेम लें क्योंकि प्रेम ही सफल जीवन
का रहस्य है।
निम्न चीजो का साथ छोड दें जीवन स्वत: सफल,
सुखद, सरल, सुगम, संयम, स्वस्थ, एवम मार्यादित
बना रहेगा -
छोड दें - दूसरों को नीचा दिखाना।
छोड दें - दूसरों के धन से जलना।
छोड दें - दूसरों की चुगली करना।
छोड दें - दूसरों की सफलता पर इर्ष्या करना।
घर 4 दीवारी से नहीं 4 जनों से बनता है, परिवार उनके प्रेम
और तालमेल से बनता है | आओ मिलकर इसे बनायें; - तिलक

Saturday, August 23, 2014

नटखट पर निहाल माँ

नटखट पर निहाल माँ
यही माँ अपने नन्हे नटखट के साथ व्यस्त जीवन में आनन्द के क्षण
निकाल कर, उसकी किलकारियों से निहाल हो जाती है। 
घर 4 दीवारी से नहीं 4 जनों से बनता है, परिवार उनके प्रेम
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